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अवधी कविताएँ (13 अक्टूबर 2017), मुखपृष्ठ संपादकीय परिवार

सुनि लऽ अरजिया हमार
रूपनारायण त्रिपाठी

हथवा माँ फूल, नयनवाँ माँ विनती,
सुनि लऽ अरजिया हमार हो गंगा जी।

देहियाँ कै दियना, परनवाँ कै बाती
झिलमिल-झिलमिल बरै सारी राती।
तबहूँ न कटै अन्हियार हो गंगा जी,
सुनि लऽ अरजिया हमार हो गंगा जी।

नगर पराया, डगर अनजानी
मनवाँ माँ अगिनि, नयनवाँ माँ पानी।
कब मिली अँचरा तोहार, हो गंगा जी
सुनि लऽ अरजिया हमार हो गंगा जी।

केहू नाही केहुके विपतिया कै साथी
दिनवाँ कै साथी, न रतिया कै साथी।
सुनै केहु न केहु क गुहार, हो गंगा जी
सुनि लऽ अरजिया हमार हो गंगा जी।

काउ कही गुलरी क फूल भये सुखवा
मनई न बूझै, मनई क दुखवा।
छन-छन धोखवा कै मार, हो गंगा जी
सुनि लऽ अरजिया हमार हो गंगा जी।

सीत-घात-बरखा माँ बरहो महिनवाँ
राति-दिन एक करै खुनवाँ पसिनवाँ।
तबौ रहै देहियाँ उघार, हो गंगा जी।
सुनि लऽ अरजिया हमार हो गंगा जी।

पिठिया पै बोझ लिहे, पेटवा माँ भुखिया
दिन-राति रोटी बदे, जूझा करै दुखिया।
तबहूँ न मिलत अहार, हो गंगा जी
सुनि लऽ अरजिया हमार हो गंगा जी।

पियरी चढ़ावै तोहइँ, गउवाँ कै गोरिया
छीछि पनियाँ माँ खेलै छपकोरिया।
धरती कऽ राजकुमार हो गंगा जी
सुनि लऽ अरजिया हमार हो गंगा जी।

जाने कब आँखि खोलि अंहगरे निहरिहैं
जाने कब गउवाँ क दिनवाँ बहुरिहैं।
कब मिली यनकाँ अहार हो गंगा जी।
सुनि लऽ अरजिया हमार हो गंगा जी।

कहाँ गयी निबिया जवान
पारस 'भ्रमर'

हमरे अँगनवा न बोलै सुगनवा,
अँखिया मा सिसुकै परान।
कहाँ गयी निबिया जवान?

निबिया के बिरवा कटाय दिहौ बाबा,
घर की चिरैया उड़ाय दिहौ बाबा।
उड़िगै नयनवाँ सयान॥
कहाँ गयी निबिया जवान?

निबिया कै चिफुरी चइलिया कै अगिया,
जरि-जरि होइगै कोइलवा से रखिया।
लागै जहनवा मसान॥
कहाँ गयी निबिया जवान?

सूनी है पुरई, सूने हैं पुरवा,
सूनी देहरिया है, सूने दुवरवा।
सूने ओसरवा सिवान॥
कहाँ गयी निबिया जवान?

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तेरह कहानियाँ
रमेश उपाध्याय

कहानीकार अपनी कहानी के लिए कौन-सा विषय चुने, कौन-सी समस्या उठाए, उस विषय या समस्या को कहानी में उठाने के लिए कैसे पात्र चुने, उनके भीतरी-बाहरी संघर्षों को कैसे सामने लाए और कहानी को एक तार्किक परिणति वाले कलात्मक अंत तक कैसे पहुँचाए - कहानी की रचना-प्रक्रिया से संबंधित ये तमाम प्रश्न निरे साहित्यिक प्रश्न नहीं, बल्कि बड़े गहरे अर्थों में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रश्न हैं और आज की दुनिया का राजनीतिक अर्थशास्त्र तब तक हमारी समझ में नहीं आ सकता, जब तक हम उसे मार्क्सवादी विश्व-दृष्टि से न देखें। मार्क्सवादी विश्व-दृष्टि की एक अनन्य विशेषता है वर्गीय पक्षधरता, जो कथासाहित्य में कथा-पात्रों के प्रति लेखकीय सहानुभूति के रूप में व्यक्त होती है। लेकिन यह विशेषता बहुत-से गैर-मार्क्सवादी लेखकों के कथा-लेखन में भी पाई जाती है। अतः कथाकार की विश्व-दृष्टि क्या है, यह हम तभी जान सकते हैं, जब यह देखें कि कथाकार की सहानुभूति किन पात्रों के प्रति है और उस सहानुभूति का वह करना क्या चाहता है। कहानी की रचना-प्रक्रिया का यह प्रश्न लेखन की पद्धति का प्रश्न नहीं, बल्कि लेखक की विश्व-दृष्टि का प्रश्न है, जिससे वह देखता है कि जिन पात्रों को वह अपनी सहानुभूति दे रहा है, उनकी वास्तविक दशा और दिशा क्या है; उनका अतीत क्या रहा है और वर्तमान में निहित उनके भविष्य की संभावनाएँ क्या हैं। - रमेश उपाध्याय

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ISSN 2394-6687

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